SAMRAT ASHOKA(सम्राट अशोक)

सम्राट अशोक

सम्राट अशोक का इतिहास | Samrat Ashok History In Hindi


S.N.जीवन परिचय बिंदुसम्राट अशोक जीवन परिचय
जन्मलगभग ३०४ ईसा पूर्व
मृत्युलगभग २३२ ईसा पूर्व
पितासम्राट बिंदुसार
माताधर्मा (सुभाद्रंगी )
संतानकोई जानकारी नही परंतु कहा  जाता है महेंद्र तथा संघमित्रा उनकी प्रथम पत्नी की संतान थे
भारत मे कई महान शासक हुये जिनमे से एक थे सम्राट अशोक । सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व पटना के पाटलीपुत्र मे हुआ था तथा 72 वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात इनकी मृत्यु 232 ईसा पूर्व मे पटलिपुत्र मे ही हुई। सम्राट अशोक सम्राट  बिन्दुसार के तथा माता सुभाद्रंगी के पुत्र थे तथा सम्राट अशोक सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्यके पौत्र थे, उन्हे मौर्य साम्राज्य का तीसरा शासक माना जाता था। सम्राट अशोक की माता चंपक नगर के एक बहुत ही गरीब परिवार की बेटी थी। सम्राट अशोक को एक सफल और कुशल सम्राट बनाने मे आचार्य चाणक्य का बहुत बड़ा हाथ है| आचार्य चाणक्य ने उन्हें एक सफल और कुशल सम्राट के सभी गुण सिखाये|

Samrat Ashok’s Childhood Qualities

सम्राट अशोक  बचपन से ही शिकार के शौकीन थे तथा खेलते खेलते वे इसमे निपूर्ण भी हो गए थे। कुछ बड़े होने पर वे अपने पिता के साथ साम्राज्य के कार्यो मे हाथ बटाने लगे थे तथा वे जब भी कोई कार्य करते अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखते थे, इसी कारण उनकी प्रजा उन्हे पसंद करने लगी थी।
उनके इन्ही सब गुणो को देखते हुये, उनके पिता बिन्दुसार  ने उन्हे कम उम्र मे ही सम्राट घोषित कर दिया था। उन्होने सर्व प्रथम उज्जैन का शासन संभाला, उज्जैन ज्ञान और कला का केंद्र था तथा अवन्ती की राजधानी। जब उन्होने अवन्ती का शासन संभाला तो वे एक कुशल रजनीतिज्ञ के रूप मे उभरे। उन्होने उसी समय विदिशा की राजकुमारी शाक्य कुमारी से विवाह किया । शाक्य कुमारी देखने मे अत्यंत ही सुंदर थी। शाक्य कुमारी से विवाह के पश्चात उनके पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा का जन्म हुआ ।

Samrat Ashok’s Kingdom Details (सम्राट अशोक राज्य की जानकारी)



कहा जाता है कि अशोक  का साम्राज्य पूरे भारत तथा ईरान की सीमा तथा पश्चिम-उत्तर हिंदुकश था। फिर उनका शासन धीरे धीरे बढ़ता ही गया। उनका साम्राज्य उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। परंतु कलिंग की लड़ाई मे भारी नर संहार को देखते हुये उन्होने बौद्ध धर्म को अपना लिया । उन्होने इसके बाद शांति के मार्ग को अपनाया मतलब धर्म विजय की नीति को अपनाया। इस समय सम्राट एक शासक और संत दोनों के रूप मे सामने आए। उन्होने अपने साम्राज्य के सभी लोगो को लोकमंगल के कार्यो मे शामिल होने की सलाह दी। इसके बाद उनके सारे कार्य लोकहित को लेकर थे।

Samrat Ashok’s Love For Religion

अशोक सम्राट ने इसके बाद अपने धर्म के प्रचार को ही अपना मुख्य उद्देश्य माना । अपने धर्म के प्रचार के लिए उन्होने धर्म ग्रंथो का सहारा लिया तथा पत्थर के खंबों गुफाओ तथा दीवारों पर चिन्ह और संदेश अंकित करवाये। अशोक सम्राट ने 84 स्तूपो का निर्माण कराया इसके लिए उन्हे केवल 3 वर्ष का समय लगा। वाराणसी के निकट सारनाथ स्तूप के अवशेष आज भी देखे जा सकते है। मध्य प्रदेश का साची का स्तूप भी बहुत प्रसिद्ध है ।

Death Of Samrat Ashok

लगभग 40 वर्षो के शासन के बाद अशोक सम्राट की मृत्यु हो गयी । उनकी पत्नियों के बारे मे कोई खास जानकारी किसी किताब या कही और नहीं है। परंतु उनके पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा का उनके धर्म प्रचार मे काफी योगदान है । कहा जाता है अशोक की मृत्यु के बाद भी मोर्या वंश का साम्राज्य लगभग 50 वर्षो तक चला।

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